अगर ये सच है की
इतिहास सदा राज सिंहासनो के पाए तले लिखा जाता है
तो फिर क्यूँ हमें कबूल नहीं
की इतिहास सिर्फ वो नहीं जो
राम, कृष्ण या अशोक को महान बताता है
इतिहास उन तमाम नष्ट किये,
जलाये कुचले पन्नो में भी
दर्ज हो सकता है
जो आज भी नरकासुर की चुराई गयी
सोलह हज़ार रानियों के आंसुओ में शामिल है,
जो आज भी फूटी पड़ी ताड़कासुर की ताड़ी की हांडियो
में है,
जो आज भी किसी क्षत्रिय को श्रेष्ट धनुर्धर बनाने
के लिए
किसी आदिवासी के कटवाए गए अंगूठे में सिसकता है,
यक़ीनन वो भी हमारा ही इतिहास है
मगर न उस इतिहास पर किसी को गर्व है, न ही शर्म
वी इतिहास की तमाम कहानियो से उपेक्षित
पड़ा है अधनंगा सा,
अगर कभी इस इतिहास को पलटा गया
तो जो सच सामने आएगा
वो न जाने कितने कितने भगवानो के
चेहरों पर पड़े नकाब हटा देगा
न जाने कितनी आस्थाए धूमिल होंगी
ना जाने कितने शोषितों को न्याय मिल पायेगा
मगर ऐसा शायद ही हो पाए
क्यूंकि सच तो यही है
इतिहास सदा सिंहासनो के पाए तले लिखे जाते है...
© कमल किशोर जैन (29 अगस्त 2013)
अदभुत कृति ... निश्चित रूप से अविस्मर्णीय ..