कमल किशोर जैन
दुनिया की हर कहानी की तरह ही होगा
इस कहानी का भी
प्रारंभ और अंत
बिलकुल सामान्य; संभवतया कुछ उजला कुछ स्याह
परन्तु जो रहेगा सर्वाधिक रोचक और ज्वारीय
वो यही होगा.... यही यानि ये "बीच का हिस्सा"

इस कहानी का प्रारंभ तुमने रचा
अपनी ही तरह अल्हड, उन्मुक्त और निश्छल
और अंत रचा तुम्हारे अपनों ने .... तुम्हारे लिए
उदास, षड्यंत्रों और तमाम बंदिशों से युक्त
पर अपनी मरजी और इच्छाओ से
हमने मिलकर जो जिया
वो यही था..... यही यानि ये "बीच का हिस्सा" 

किसी उन्मुक्त नदी की मानिंद
प्रारंभ से ही रही तुम वेगवती
और किसी समंदर में मिल कर पाओगी
निज पूर्णता को तुम
पर सहस्त्रो लोगो और खुद तुम्हे
शांति और जीने का मकसद देगा
यही .... बस यही यानि ये "बीच का हिस्सा"

मुझे याद नहीं है लेश मात्र भी कुछ
ना अपना प्रारंभ ना अंत
सतत प्रयासों से भूल पाया हूँ मैं
ये व्यर्थ सा सब कुछ
बस रहा जो शेष स्मृतियों में मेरे
वो यही है .... यही यानि ये "बीच का हिस्सा"