कमल किशोर जैन
(हालाँकि मैं नेरूदा नही.. और मैने उन्हे ज़्यादा पढ़ा भी नही.. पर ये कविता मेरे किसी अपने को बहुत पसंद है.. ओर उसी ने सबसे पहले मेरा परिचय नेरूदा से करवाया.. पता नही क्यूँ आज जब इस कविता को पढ़ने बैठा तो लगा की इसका एक एक शब्द मेरे मनोभाव को व्यक्त कर रहा है... अत: ये अनुवाद उस खास इंसान को समर्पित)

शायद आज रात मैं लिख पाऊंगा अपनी सबसे उदास कविता

इतनी कि जैसे ये रात है सितारों भरी
और नीले तारे सिहरते हैं दूर कहीं बहुत दूर
रात की हवाएं इस अनंत आकाश मे गाते हुए यूँ ही बेसबब डोलती हैं

आज रात लिख पाऊंगा अपनी सबसे उदास कविता
क्योंकि मैंने उसे चाहा, ओर थोड़ा उसने मुझे
इस रात की तरह थामे रहा उसे बाहों में
इस अनंत आकाश तले चूमा था उसे
क्योंकि उसने मुझे चाहा, थोड़ा  मैंने उसे
उसकी बड़ी ठहरी आँखों से भला कौन न करेगा प्यार
आज रात  लिख पाऊंगा सबसे उदास कविता अपनी
ये सोच कर कि अब वह मेरी नहीं. इस अहसास से कि मैंने उसे खो दिया

रातों को सुनकर, और-और उसके बिना पसरती रात
चारागाह पर गिरती ओस के मानिंद उसके छंद गिरते है आत्मा में
क्या फर्क पड़ता है यदि मेरा प्रेम उसे संजो न सका
रात तारों भरी है और वह मेरे संग नहीं
बस ये सब है. दूर कोई गाता है बहुत दूर

उसे खोकर मेरी आत्मा व्याकुल है
निगाहें मेरी खोजती हैं उसे, जैसे खींच उसे लायेंगी करीब

दिल मेरा तलाशता है, पर वह मेरे साथ नहीं.

वही रात, वही पेड़, उजला करती थी जिन्हें
पर हम, समय से .. कहाँ रहे वैसे

ये तय है अब और नहीं करूँगा उससे प्यार, पर मैंने उससे कितना किया प्यार
मेरी आवाज़ आतुर ढूंढ़ती है हवाएं जो छू सकें उसकी आवाज़
होगी, होगी  किसी और की जैसे वह मेरे चूमने के पहले थी


उसकी आवाज़,  दूधिया देह और आँखें निस्सीम
ये तय है अब और नहीं करूँगा उससे प्यार, या शायद करता रहूँ प्यार


कितना संक्षिप्त है ये हमारा प्यार.. और भूलने का अरसा कितना लंबा
ऐसी ही रात में मैं थामे था उसे अपनी बाहों में


मेरा मान शांत नही है उसे खोकर
शायद यह अंतिम पीड़ा है जो उसने दी है मुझे

और ये अंतिम कविता जो मैं लिखूंगा
उसके लिए .सिर्फ़ उसी के लिए