कमल किशोर जैन
रोज जहाँ से बढ़ता है दिल, वही लौट आना फितरत है इसकी,
मत घबरा ए दिल इतना, यूँ ही बेसबब जिए जाना आदत है इसकी...

*
गूंगा सा फिरता था गम ये मेरा, एक तेरे दर पर आस मिली,
लाख दयारे ढूंढी इसने, एक तुझसे लफ्जों की खैरात मिली..

*
तेरे इश्क में सोचा था खुदा बन गया हूँ मैं,
तुझसे बिछड़ा तो फकत इंसा भी ना रहा..

*
कब तलक करता सबर आखिर,
दिल ही तो था, फिर तुम्ही पे आ गया.

*
उससे बिछड़ कर हम उससे याद करते रहे..
वो बैठा बिछड़ने के तरीके को कोसता रहा..

*
ए चाँद, तू तो था सदियों से हमसफ़र मेरा,
उस से बिछड़ कर सुना है तू भी बेनूर हो गया..

*
तुम ना कहती थी के बहुत बोलता हूँ मैं,
लो, एक तुम्हारे जाने से चुप हो गया हूँ मैं...

*
सब कुछ भुला देने के बाद भी जो कुछ याद रहेगा
....वो तुम ही तो हो

*
यादें 
हमेशा अनहोनी की तरह क्यूँ आती है..
बिना बताए.. चुपचाप.. दबे पाँव.. 
और पिछे छोड़ जाती है.. बस ..वीरानीयाँ

*
इस जीवन में एक तेरा इश्क ही अब तक की कुल जमा पूंजी है..
न कुछ खोने का डर है.. न ही लूट जाने का भय..

*
वो जो सिखाते थे अक्सर सलीके मुझको,
जुदाई के बाद सुना है मुझ जैसे हो गए है

*
इस कदर तो नहीं हुए थे तर्के मरासिम दरमियां तेरे मेरे,
की तुझ बिन कैसा हूँ मैं, इसका भी तुझे इल्म नहीं.

*
मैं खता दर खता करता रहा
वो मुस्‍कुरा कर माफ करते रहे
*
जाने क्‍यूं आज चांद बरबस तेरी याद दिला रहा है

तेरी तरह बेबस--
तेरी ही तरह लाचार
और हां


......
तेरी ही तरह मुझसे दूर
*
मुद्दते गुजरी पर वो हो ना सके हमारे,
कुछ कमी थी मेरी या थी उसकी मजबूरी...
*
अब नहीं करता मैं तुझे याद उस कदर
मगर ऐसा भी नहीं की भुला ही दिया
*
जो सीखा था तुमसे वो भी प्यार ही था..
जो भुलाया तुमने वो भी प्यार ही था..
जो दिया था तुमने वो भी प्यार ही था..
जो छिना तुमने वो भी प्यार ही था...

मेरे जीवन में प्यार का जरिया तुम थी..
या तुम्हारा होना ही प्यार था..
*
तुम उदास हो तो सुबहे उदास,
तुम तन्हा तो दिन तन्हा...
*
अपनी अनगढ़ लिखाई में कभी लिखा था जो तूने
आज तलक संभाले हुए हूँ वो अनमोल खत...

रोमांस की निशानी मान जिस नीले कागज को चुना था तूने
अब धीरे धीरे पीला पड़ता जा रहा है...
समय के साथ धुंधला पड़ जाने की गरज से लिया था तूने पेन्सिल का सहारा
ना जाने क्यूँ वक़्त के साथ तेरा लिखा गहराता ही जा रहा है.
*
जिन्हे कराया था वजूद-ए-अहसास कभी,
आज मुझसे मेरी औकात पूछते है.
*
जानता हूँ फकत कुछ पलों का ही था साथ हमारा..
ये पल इतने जल्दी गुजरेंगे... ये पता नहीं था...
*
और अब तुम नहीं हो तो
कुछ भी नहीं होता,
*
क्या पता क्या साज़िशे थी खुदा की... उसको छोड़ जिसके भी करीब हुआ... उसी से जुदा कर दिया
*
वो जो पीछे छूट जाएँगे बाद रुखसत के तेरे
उन्ही वादों के सहारे गुजरेगा ज़िंदगी कोई
*
आज भी इस कदर मुझ पर तारी है तेरे इश्क़ का असर,
लेना हो नाम जब भी खुदा का, आए है तेरा ही जिकर...
 *
वो जो गुज़री थी तमाम राते इंतज़ार मे तूने मेरे...
इस रात के आगोश मे उनका भी हिसाब हो जाने दे..
 *
कयामत के दिन होगा हिसाब मेरी ख़ताओ का
मैं हूँ बावफ़ा तब तलक ये भरम बना रहने दे...
 *
रुखसत हुए मुद्दते गुज़री... खुश्बू अब तक फ़िज़ाओं में है तेरी
कयामत तलक रहेगा इंतज़ार मुझको... जाने किस पल हो वापसी तेरी
*
वतन पर कर गये जो जान निसार अपनी...
क्या सोचते होंगे कर आए बेकार जवानी अपनी...
इन नामुरादों की खातिर ही क्या मरना था हमको..
क्यूँ बिलखता छोड़ चल दिए थे माँ को अपनी..
*
जब कभी वफ़ा का दम नही भरा तुमने...
तो कैसे बेवफा कहूँ तुमको...
*
हर लम्हा होती रही गफलतें उनसे हर कदम...
जब सुलझने का वक़्त आया तो ज़िंदगी की डोर चुक गयी...
 *
लम्हा लम्हा हम होने लगे थे करीब जिनके
अब हर पल उन्ही से दूर जाने की कोशिश होगी....
 *
 नीले कागज पे पेन्सिल से लिखा तेरा खत आज भी मुझे तेरी याद दिलाता है...
कागज पे लिखा तो धुंधला गया.. पर दिल पे लिखी इबारत मिटती ही नही...

 *
कह  तो  दिया  की  तुझसे  नहीं  अब  वास्ता  कोई,
पर  जानता  हूँ  के  बिन  तेरे  नहीं  मेरा  वजूद  कोई.
*

तर्क-ए-मरासिम, तर्क-ए-मुहब्बत, रुसवाइयां भी उनकी देख लिया,
अब देखे रुखसते ज़िंदगी का और बहाना क्या होगा..
*
कर भी लेते तेरी बातों पे एतबार मगर
अपने ही तजुरबों ने भरोसा करना भुला दिया.
*
लाख कोशिशो के बाद भी खुद को ना बदल पाया हूँ मैं..
जाने तुमको क्या हुआ जो तुम तुम नही रहे..
*
लोग क्या सोचेंगे मेरे बारे में इसका मुझे मलाल नही
रंज बस इतना रहा की तू भी औरो जैसा निकाला
*
तुमको समझा था इस ज़माने से जुदा मैने
रंज बस इतना रहा की तू भी औरो जैसा निकाला
*
उनकी मोहब्बत का असर इस कदर तारी है मुझ पर
तर्क-ए-मरासिम के बाद भी ना निकले है बद्दुआ कोई.
*
निभा नही पाया शायद मैं ही उनसे कभी, वो जो पल मे मिज़ाज़ बदलते है
लिबास की बात छोड़ दो यारो, वो रोज़ाना चेहरे बदलते है..
*

हम भी थे डूबे हुए जिंदगी के कारोबार में,
क्यूँ ये इश्क़ हुआ की हम भी निक्कमे हो गये.
*
ना लगे दाग बेवफ़ाई का खुद पे कभी..
शायद इसीलिए उसने कभी इज़हार-ए-मुहब्बत नही किया.
*
जब किया तब टूट कर प्यार भी उसी ने किया,
अब तर्क-ए-मरसिम के बाद ज़ीना मुहाल भी उसी ने किया.
*
ज़िंदगी का हर रंग सिखाया उसी ने..
ओर बेरंग भी उसी ने किया.
*
मेरे नाम के अधूरेपन को भरा उसके साथ ने..
ओर ज़िंदगी को अधूरा भी बनाया उसी ने.
*
खुशिया, अरमान, सपने यहा तक अपनी ज़िंदगी से भी कर लिया समझोता उसने..
ए खुदा ! एक माँ होने की और कितनी सज़ा मिलेगी उसे..
*
लग के उसके गले, खोजता था मैं जीने के बहाने अपने.
करके इनकार यूँ संगदिल ने, जीने की वजह ही छीन ली.
*
बदलते रिश्तो की तरह बदल गया है जो...
क्या तेरे बदलने भर से बदल जाएगा वो....???
*
गर बदल भी लिया तूने खुद को उस की खातिर...
ज़रा सोच क्या यही है वो... जिसे चाहा था तूने...
*
करम तेरा रहम तेरा, ये ज़िंदगी है क्या बस भरम तेरा
ना हो संग तेरा तो फिर बचा ना कुछ धरम मेरा....
*
कभी ना की परवाह तूने, ज़माने के रस्म-ओ-रिवाज़ो की
फिर क्यूँ खुद को बदलने पर आमादा है आजकल... ??
*
तेरे होने से ही तो है मेरा भी वजूद...
जब तुम ही नही तो काहे का मैं...
*
बचे हैं जो मरासिम दरमियाँ अपने..
ढह ना जाए तेरी खामोश नज़रों से...
*
क्यूं साथ मिला किसी और को, इन्तजार मुझको नसीब
वफायें मिली किसी और को, रूसवाईयां मुझको नसीब
*
लोग अपना बनाते ही क्यूँ है, जब बेगाना कर देना होता है.
ज़िंदगी उनसे मिलावती ही क्यूँ है, जब बिछड़ जाना होता है.
*
मेरी ये ज़िंदगानी अधूरी सी है तुम्हारे बिना,
इसे पूरा कर दो... बस ये एहसान कर दो..
*
यूँ तमाम कोशिशो के बाद हम दो से एक हुए थे..
अब मुद्दते गुज़रेगी फिर से दो हो जाने मे...
*
तेरे साथ खुदा के दर पे जाने से डरता है दिल
एक खुदा के सामने दूसरे से माँगा जाए कैसे
*
तुझसे बिछड़ के बस यही सोचता हूँ...
तेरे साथ ये ज़िंदगी बिगाड़ दूं..
या तेरी यादों में ज़िंदगी गुज़ार दूं




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