मुझे नहीं आता शब्दों का तिलिस्म रच पाना
ना ही मुझमे शब्दों की अबिधा से खेल पाने का
सामर्थ्य है
मुझे नही सुझाते भावो के शाब्दिक पर्याय
ना ही मैं ढूंढ पाता हूँ अपने मन का कोई
समानार्थी
मैं नहीं रच पाता हूँ कोई अद्भुत कविता..
मुझे चाहिए बस दो पल के लिए तुम्हारा साथ
क्योंकि जब तुम और मैं साथ होते है तो.
फिर नहीं होती है किसी साहित्य की जरुरत
न ही किसी मुकम्मल भाषा की
तब हमारे भाव ही पर्याप्त होते है
हमारी मनोदशाओ को व्यक्त करने हेतु
और तब जो अशाब्दिक कविताये जन्मती है
वो अक्सर ही हुआ करती है....
विलक्षण और अद्भुत..
© कमल किशोर जैन (11 अगस्त 2013)
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