तुम हर एक रिश्ते में मुकम्मल होती हो,
जब तुम मेरी माँ थी तो लगता था की हर जन्नत यही
कही तेरे कदमो तले ही तो है,
फिर जब तुम बहन बनी तो लगा मेरी हर मुसीबत का हल
एक तुम्ही तो हो,
मेरे कठिन दिनों में मेरी ताकत बन साथ कड़ी मेरी
प्रेयसी भी तुम्ही तो थी,
मुझे हर कदम गलत राह पर जाने से रोकने वाली वो
अज़ीज़ दोस्त भी तुम्ही तो थी,
मेरे हर दुःख को अपना मान घंटो अपनी पलकें भिगोने
वाली
मेरी पत्नी बन जो जीवन में आई, वो भी तुम्ही तो
हो,
और अब मेरे अरमानो, मेरे सपनो को हकीकत की ज़मीं
दिखने वाली
वो मासूम बिटिया भी तो तुम्ही हो,
फिर कैसे कह दूँ की चंद बरस के इस जीवन में
तुम्हारी कोई जगह ही नहीं
सच कहूँ तो इस जीवन में
तुम्हारे सिवा कुछ और है ही नहीं.
© कमल किशोर
जैन (12 अगस्त 2013)
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