वो ऐसा ही कोई अगस्त का महीना था
जब तुम थे और मैं था
और साथ थी नक्की की वर्तुल लहरे
चांदनी रातें और शीतल हवाएं
इतने दिनों के हमारे रिश्ते को जब एक नाम मिला
वो ऐसा ही कोई अगस्त का महीना था...
कहते है पहाडो में प्रेम की जड़े होती है सबसे गहरी,
वही बहा करती है प्रेम की बयार
सबसे गहरी, सबसे असरदार..
उन्ही पहाडो पर तो पनपा था हमारा ये प्रेम
जो अब तक असरदार है, उतना ही गहरा..
उन पहाडो पर जब हम संग चले थे
वो ऐसा ही कोई अगस्त का महीना था..
जब तुम थे और मैं था
और साथ थी नक्की की वर्तुल लहरे
चांदनी रातें और शीतल हवाएं
इतने दिनों के हमारे रिश्ते को जब एक नाम मिला
वो ऐसा ही कोई अगस्त का महीना था...
कहते है पहाडो में प्रेम की जड़े होती है सबसे गहरी,
वही बहा करती है प्रेम की बयार
सबसे गहरी, सबसे असरदार..
उन्ही पहाडो पर तो पनपा था हमारा ये प्रेम
जो अब तक असरदार है, उतना ही गहरा..
उन पहाडो पर जब हम संग चले थे
वो ऐसा ही कोई अगस्त का महीना था..
© कमल किशोर जैन (09 अगस्त 2013)
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