undefined
undefined
कमल किशोर जैन
हे री मैं तो प्रेम दीवानी , मेरा दर्द न जाने कोय ,
सूली ऊपर सेज हमारी , किस विध सोवण होय |
गगन मंडल पे सेज पिया की , किस विध मिलना होय ||
घायल की गति घायल जाने , कि जिन लायी होय |
जौहरी की गत जौहरी जाने , कि जिन जौहर होय ||
दर्द की मारी बन बन डोलूं , बैद मिलिया नहीं कोय |

मीरा की प्रभु पीर मिटेगी , जब बैद सांवलिया होय ||
प्रेम में ऐसा मुकाम मिल पाना हर किसी के नसीब मे कहाँ... जहाँ "मैं" ख़तम हो जाए वहीं से सच्चे इश्क़ की शुरुआत होती है.. इसी समर्पण भाव के चलते "मीरा" को तो उसके "श्याम" मिल गये.. पर हम सब किसी ना किसी दुनियादारी के खेल मे इस कदर फँसे है की अपने कृष्ण को पाना तो दूर... उसे पहचान तक नही पाते है. दरअसल प्रेम का स्वरूप ही इतना उद्दात है की उसमे व्यक्ति का अहंकार, उसका Ego सब मिट जाते है. पर उसके लिए जरुरी है की प्रेम में समर्पण का भाव आये. क्यूंकि जब तक हमारे मन में अपने प्रियतम पर अधिकार की भावना रहेगी.. प्रेम में इर्ष्या और जलन का भी स्थान रहेगा.. और ये इर्ष्या और जलन ही एक दिन शक और संदेह को जन्म दे देते है. और जब ये भाव किसी रिश्ते में आ जाये तो उसका ख़तम हो जाना भी सुनिश्चित सा हो जाता है. इसलिए प्रेम में कभी अधिकार का भाव न आये. दूसरा हम सभी इन्सान है ऐसे में हममे इंसानी गुण-दोषों का होना भी लाज़मी है.. इसलिए हमें कभी ये आशा नहीं करनी चाहिए की हमारे प्रिय में सिर्फ खूबियाँ ही हो खामियां न हो.. साथ ही उसका फिजूल विश्लेषण भी न करें.. बस समर्पित कर दें अपने आप को अपने प्रिय के लिए, अपने प्रेम के लिए.. बिना किसी सोच विचार के... फिर देखिये ...
(मीरा बाई का स्केच www. barunpatro.blogpost से साभार)


शीर्षक |
0 Responses

Post a Comment