कमल किशोर जैन
काफी अरसा हो गया इस वाकये को पर आज न जाने क्यूँ फिर से याद आ रहा है. मेरे घर से लगता हमारे पडोसी का घर है. उन्होंने एक चिड़िया पाल रखी  है. पाल क्या रखी है, बस वो दिनभर उन्ही के आंगन में फुदकती रहती है. मैं अक्सर उसको निहारता रहता. बड़ी प्यारी चिड़िया थी... एकदम सुनहरी सा रंग..  और पडोसी ने उसके पैरो में एक छोटा सा घुंघरू भी बांध रखा था, जिससे वो जब भी यहाँ से वहां घुमती तो घर में घुंघुरू की बड़ी ही प्यारी सी आवाज भी उसके साथ चलती.
मैं जब भी उसको देखता मेरा बहुत मन होता की काश वो चिड़िया एक बार ही सही मेरे घर के आंगन में भी उतरे, अरसे के इंतजार के बाद एक दिन वो सुनहरी चिड़िया पडोसी के छज्जे से उतर कर मेरे आंगन में आ पहुंची... उसे यूँ अचानक आया देख मुझे विश्वास नहीं हुआ की जिसे रोज दूर से देखता था आज वो मेरे इतना करीब है.. की मैं उसे छू सकता हूँ.. उसको महसूस कर सकता हूँ.. बहरहाल मैंने उसको अपने हाथो से चुग्गा खिलाया.. वो उचल कर मेरे हाथ पर बैठ गई और मैं उसे देर तक सहलाता रहा.. 
उसके बाद तो ये लगभग रोज़ का ही सिलसिला हो गया. उसका सवेरे सवेरे आना और देर तक हम दोनों का साथ बैठना.. मुझे लगाने लगा था की अब वो पडोसी के घर की चिड़िया नहीं बल्कि मेरे घर की ही सदस्य है. एक खास किस्म का लगाव भी हो गया था उससे. फिर अचानक से न जाने क्यूँ उसका हमारे घर आना बंद हो गया.. देखा फिर से वो वहीँ पडोसी के आंगन में फुदकती घूम रही है.. अपने पैरो से घुंघरुओं की आवाज करते हुए.. बहुत इंतजार किया उसका की वो फिर से मेरे आंगन में भी उतरे.. पर शायद ये होना फिर से मुमकिन नहीं था.. अब भी देखता हूँ उस चिड़िया को पडोसी के आंगन में फुदकते हुए.. तो दिल को सुकून सा मिलता है.. की चलो  मैं उसको यूँ ख़ुशी से फुदकते हुए तो देख सकूँगा. ... भले इस आंगन न सही.. उस आंगन ही सही. 


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