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लेखक - किधोर चौधरी |

इस किताब ने दो मिथक तोडे है, पहला ब्लॉग लिखने वाले गंभीर लेखक नहीं हो सकते या ब्लॉग पर केवल कूडा करकट मिलता है। दूसरा, अभी भी हिन्दी पढने वालों की तादाद में कोई कमी नहीं हुई है बल्कि फेसबुक सरीखे सोशल मीडिया के नए ठिकानों ने दनकी संख्या में आशातीत बढोतरी की है। जिन लोगो ने किशोर चौधरी की इस पुस्तक को पढा है या उनके ब्लॉग को पढा वे संभवतया मेरी इस बात से पूर्णतया सहमत होंगे कि किशोर का लिखा सीधा दिल को छूता है। कोई लाग लपेट नहीं कोई साहित्यिक गुलाटियां नहीं, मुझे याद आता है अपने एक इंटरव्यू में फिराक साहब ने कहा था कि बेहतर साहित्य हमेशा सब्जी वालों की भाषा में लिखा जाता है, एकदम सीधा और सरल। हालांकि किशोर का लिखा इतना भ्ज्ञी सीधा और सरल नहीं है परन्तु उसके भाव समझने के लिए आपको ज्यादा माथापच्च्ी नहीं करनी पडती। बहरहाल किताब में शामिल एक एक कहानी रिश्तो के नए मायने, स्त्री-पुरूष संबंधो की विवेचना करती नजर आती है।
हिन्दी और हिन्दी की ताकत को फिर से साबित करने और स्थापित करने के लिए किशोर चौधरी और प्रकाशक हिन्द युग्म को साधुवाद!!!
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