गाँधी, तुम थे ये मानना ज़रा दुष्कर हो चला है मेरे
लिए
आजकल कौन किसी के कहने से यूँ सब कुछ छोड़ छाड़ कर चल
देता है
अब कौन किसी के थप्पड़ मरने पर अपना दूसरा गाल भी आगे
कर देता है
बापू! अब कहा केवल अहिंसा के दम पर दुश्मनों को शिकस्त
दे पाना मुमकिन है
अब कहा तुम सा समर्पण और धैर्य ला पाना संभव है
ना जाने कैसे तुमने उन मुर्दों में जान फूंकी होगी
जाने कैसे उनमे देशप्रेम का ज़ज्बा डाला होगा
ये तुमसे ही संभव था जो एक लाठी के दम पर अंग्रेजो
को खदेड़ पाए
ये तुमसे ही संभव था जो पाठ अहिंसा का हमको सीखा पाए
बापू! तुम युग नियंता थे, तुम सर्जक थे इस नए भारत
के
जो स्वप्न तुमने दिखाए थे आज़ादी की उस अलसभोर में
हमको
अफ़सोस उन सपनो को जाने कहीं बिसरा दिया है हमने
और धिक्कार है हम पर, जो संजो नहीं पाए तुम्हारे आदर्शो
को
सुना है, आजकल तुम्हारे बलिदान पर भी लोग अंगुलिय
उठाने लगे है
© कमल किशोर जैन ( 02 अक्तूबर, 2013 )
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