मुझे शब्द पसंद थे तुम्हे मौन..
मुझे भीड़ चाहिए थी, तुम्हे एकांत..
मुझे अफसाने उकसाते थे, तुम्हे जमीन की हकीकत..
मुझे बागी बन जाना था, तुम्हे तुम्हारे संस्कार रोकते थे..
...फिर भी मुझे तुम पसंद थे, तुम्हे मैं
और अब जान मैं बिलकुल तुम्हारे जैसा हो गया हूँ..
ना मुझे शब्दों से प्यार रहा ना भीड़ से,
अब ना कोई अफसाना मायने रखता है
ना ही मुझे बागी बन जाना है..
फिर भी ना जाने क्यों...
मुझे तुम पसंद हो
और
.....शायद तुम्हे मैं
मुझे भीड़ चाहिए थी, तुम्हे एकांत..
मुझे अफसाने उकसाते थे, तुम्हे जमीन की हकीकत..
मुझे बागी बन जाना था, तुम्हे तुम्हारे संस्कार रोकते थे..
...फिर भी मुझे तुम पसंद थे, तुम्हे मैं
और अब जान मैं बिलकुल तुम्हारे जैसा हो गया हूँ..
ना मुझे शब्दों से प्यार रहा ना भीड़ से,
अब ना कोई अफसाना मायने रखता है
ना ही मुझे बागी बन जाना है..
फिर भी ना जाने क्यों...
मुझे तुम पसंद हो
और
.....शायद तुम्हे मैं
© कमल किशोर जैन 30 जुलाई 2013
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