लेखक - किधोर चौधरी |
पिछले दिनों कुछ एसा गठित हुआ जो हिन्दी साहित्य में एक अनूठा इतिहास रच गया। ऐसे दौर में जब हर कोई किताबो और उनको पढने वालों को बीते जमाने का बताने से नहीं चूक रहा था ठीक उसी समय एक नए परन्तु अनजाने नहीं ब्लॉगर की पहली किताब आने की घोषणा होती है और मानो समूचे साहित्य जगत में एक जलजला आ जाता है। ऑल इंडिया रेडियो के इस मुलाजिम को उनके ब्लॉग या फेसबुक के माध्यम से जानने वालो की संख्या तो खासी है परन्तु इन माध्यमों से दूर रहने वाले लोगो के लिए ये नाम उतना ही अनजाना या नया है जितना कि मेरा या किसी भी दूसरे इन्सान का नाम। ऐसे में किशोर चौधरी की किताब को वेब बुक स्टोर इंफीबीम ने प्री-लांच बुकिंग के लिए रखा तब तमाम अंग्रेजी किताबो की सूची में इनका कहानी संग्रह चौराहे पर सीढियां अकेली हिन्दी की पुस्तक थी। साईट पर आने के महज चार से पांच दिनों की भीतर ये दूसरे स्थान पर जा पहुंची इतना ही नहीं प्री-बुक्रिग के मामले में इस किताब ने ना जाने ख्यात हिन्दी अंग्रेजी किताबो को पीछे छोड दिया है।वर्तमान में किताब इंफीबीम और फ्लिपकार्ट दोनो वेब स्टोर पर धडल्ले से बिक रही है।
इस किताब ने दो मिथक तोडे है, पहला ब्लॉग लिखने वाले गंभीर लेखक नहीं हो सकते या ब्लॉग पर केवल कूडा करकट मिलता है। दूसरा, अभी भी हिन्दी पढने वालों की तादाद में कोई कमी नहीं हुई है बल्कि फेसबुक सरीखे सोशल मीडिया के नए ठिकानों ने दनकी संख्या में आशातीत बढोतरी की है। जिन लोगो ने किशोर चौधरी की इस पुस्तक को पढा है या उनके ब्लॉग को पढा वे संभवतया मेरी इस बात से पूर्णतया सहमत होंगे कि किशोर का लिखा सीधा दिल को छूता है। कोई लाग लपेट नहीं कोई साहित्यिक गुलाटियां नहीं, मुझे याद आता है अपने एक इंटरव्यू में फिराक साहब ने कहा था कि बेहतर साहित्य हमेशा सब्जी वालों की भाषा में लिखा जाता है, एकदम सीधा और सरल। हालांकि किशोर का लिखा इतना भ्ज्ञी सीधा और सरल नहीं है परन्तु उसके भाव समझने के लिए आपको ज्यादा माथापच्च्ी नहीं करनी पडती। बहरहाल किताब में शामिल एक एक कहानी रिश्तो के नए मायने, स्त्री-पुरूष संबंधो की विवेचना करती नजर आती है।
हिन्दी और हिन्दी की ताकत को फिर से साबित करने और स्थापित करने के लिए किशोर चौधरी और प्रकाशक हिन्द युग्म को साधुवाद!!!
इस किताब ने दो मिथक तोडे है, पहला ब्लॉग लिखने वाले गंभीर लेखक नहीं हो सकते या ब्लॉग पर केवल कूडा करकट मिलता है। दूसरा, अभी भी हिन्दी पढने वालों की तादाद में कोई कमी नहीं हुई है बल्कि फेसबुक सरीखे सोशल मीडिया के नए ठिकानों ने दनकी संख्या में आशातीत बढोतरी की है। जिन लोगो ने किशोर चौधरी की इस पुस्तक को पढा है या उनके ब्लॉग को पढा वे संभवतया मेरी इस बात से पूर्णतया सहमत होंगे कि किशोर का लिखा सीधा दिल को छूता है। कोई लाग लपेट नहीं कोई साहित्यिक गुलाटियां नहीं, मुझे याद आता है अपने एक इंटरव्यू में फिराक साहब ने कहा था कि बेहतर साहित्य हमेशा सब्जी वालों की भाषा में लिखा जाता है, एकदम सीधा और सरल। हालांकि किशोर का लिखा इतना भ्ज्ञी सीधा और सरल नहीं है परन्तु उसके भाव समझने के लिए आपको ज्यादा माथापच्च्ी नहीं करनी पडती। बहरहाल किताब में शामिल एक एक कहानी रिश्तो के नए मायने, स्त्री-पुरूष संबंधो की विवेचना करती नजर आती है।
हिन्दी और हिन्दी की ताकत को फिर से साबित करने और स्थापित करने के लिए किशोर चौधरी और प्रकाशक हिन्द युग्म को साधुवाद!!!