मैं खता दर खता करता रहा,
वो मुस्कुरा कर माफ़ करते रहे..
मेरे तमाम ज़ुल्मो का
वो यूँ हिसाब करते रहे..
चले जाना था जिस दिन हमें उनकी ज़दों से इलाही
उसी रात वो सजदे में सर झुकाते चले गए..
माँगा तो हमने भी था उन्हें अपनी फरियादो में
वो जाने क्या क्या हम पर लुटाते चले गए.
सुना है वो अब भी गुम है मोहब्बत की उन हसीं यादो में
हम जिंदगी के रोजगार में खुद को भुला गए
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© कमल किशोर जैन (23 दिसंबर, 2015)
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