जानता था कभी मूर्त रूप ले ही नहीं पाएगा हमारा प्रेम
हालाँकि मैंने तुमसे ही जानी थी छुअन प्यार की
गाहे बेगाहे यूँ ही छू लिया करता था तुम्हे
मेरी सांसो में अब भी बसी है तुम्हारे बदन की
खुशबू
अपने तमाम समर्पण के बावजूद जानता था
कभी तुम पर कोई हक नहीं जाता पाउँगा
क्यूँ की ये हक ना जाने क्यूँ
तुमने अनायास ही दे दिया था किसी और को
हालाँकि प्रेम का उन्माद तुम पर भी तारी था
मगर हमारा ये सभ्य और सुसंस्कृत समाज
किसी इंसान को दो बार प्रेम करने की इजाजत नही देता
और गलती से वो इंसान "स्त्री" हो
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