undefined
undefined
कमल किशोर जैन
तुम बिलकुल भी तो नहीं थी..
अप्रतिम... अद्वितीय... अद्भुत..

ना ही तुम्हारा मुख चन्द्रमा सा था
ना ही तुम्हारे बाल,  काले मेघ
ना तुम्हारी आंखे मानसरोवर सी थी
ना तुम्हारे होठ कमल

तुम भी औरों जैसी ही तो थी
वो ही हाड-मांस से बनी
वो ही रगों में बहता खून, बदन से बहता पसीना
औरों की ही तरह बात बात पर रूठना
बिलकुल ऐसी ही तो थी तुम

फिर क्या था जो तुम्हे बना देता था
अप्रतिम... अद्वितीय... अद्भुत..

संभवतया वो अगर कुछ था तो
अनंत प्रेम, समर्पण, निश्छल स्नेह
जो संभव ही नहीं था कहीं और पा सकना
वही तो था, जो मैं तुमसे किया करता था..
प्रेम.. सिर्फ और सिर्फ प्रेम..


- कमल किशोर जैन. 13.6.2013


undefined
undefined
कमल किशोर जैन
कितना कुछ था हमारे दरमियाँ.. बेवजह सा
वो बेवजह तेरा हँसना.. वो बेवजह की मेरी नाराजगियां,
बेवजह ही होगा तेरा यूँ मेरे दिल में उतर जाना,
बेवजह ही तो था तेरा मुझमे सिमट जाना,

गर उस वक्त तेरे संग-ओ-साथ को कुछ मुकम्मल वजहे मिल जाती,
तो आज शायद यूँ बेवजह जीना नहीं पडता,
कुछ रिश्ते यूँ बेवजह निभाने नहीं पड़ते,
कुछ यादें यूँ बेवजह संजोनी नहीं पड़ती,

जाने क्यूँ उस प्यार को कभी कोई वजह ही ना मिल पाई,
या जाने यूँ बेवजह जीना ही जिंदगी बन गई..


- कमल किशोर जैन.13.6.2013