कमल किशोर जैन

बस चंद दिन और... 
फिर तुम नहीं होंगी
यूँ इस तरह मेरे साथ
जिस तरह होती हो इन दिनों
ना होंगी तुम्हारी हिदायते
ना होगी कोई शिकायते
सोच कर भी घबरा जाता हूँ मैं
फिर कोई नहीं होगा
यूँ हर बार मुझे समझाने वाला
इस बार बिखरने से पहले 
हज़ार बार सोचना होगा मुझको
अब नहीं होगा कोई मुझे संभालने वाला
ऐसा नहीं की इन सब खयालो से
बावस्ता नहीं था मेरा वजूद
मगर इन सब से परे कुछ और भी था
जो था इन सब से ज्यादा अहम.. 
इन सबसे जरुरी
और वो थे तुम्हारे लिए मेरे एहसास
तुम्हारा मान, तुम्हारा सम्मान
जो न जाने क्यूँ दबता जा रहा था
इन खोखले आदर्शो, उसूलों के बोझ तले
और बहुत जरुरी हो चला था
तुम्हे इन सब से आजाद कर देना
जानता हूँ बहुत कोशिशो के बाद संभल पाया था
ये रिश्ता हमारे तुम्हारे दरमियाँ
मगर इससे भी ज्यादा जरुरी थे
मेरी नज़र में... कुछ और रिश्ते..
वो जिनके लिए तुम्हारा होना
उतना ही जरुरी था
जितना की तुम्हारा होना
ऐसा नहीं की अब तुम नहीं रहोगी मेरे साथ
तुम हरदम यही होंगी..
मेरी हर बकवास.. मेरी हर झल्लाहट के साथ
तुम यही रहोगी..
और हमारे हर काम में.. फिर जब हर गलती पर
तुम्हारे  न होने का एहसास भारी हो जायेगा
तब.. जो सुकून मिलेगा मुझे
वो दूर कर देगा
तेरे यहाँ न होने के एहसास को
बस यही दुआ है अब खुदा से
की ए दोस्त अब जहा भी है तू
अब खुश रहना..
और जैसे हो बस.. बने रहना..
मेरे साथ.. 


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