कमल किशोर जैन


(तकनीक अपने साथ कुछ नया तो लाती ही है पर वो अपने साथ पुराने को बिरसा भी देती है, टेबलेट, कंप्यूटर और ना जाने क्या क्या... एक छोटे से डिब्बे मे संसार समा लेने का दम भरते लोग... पर एक बात अक्सर भूल जाते है की जो सुख काग़ज़ पे छपे को आँखो से महसूस करके दिल-दिमाग़ में बैठा लेने का सुख है वो इन 7-8 इंच की हाई टेक स्क्रीन में देखने में नही है.... एक ऐसी ही खूबसूरत तुलना राजेश जी ने इस कविता में की है)







टेबलेट में स्क्रीन को टच
करके उन्हे पढ़ते देखा
चौखने में सारा
संसार टटोलते देखा
लेकिन!!!!
पढ़ने का मज़ा तो किताब में हैं
ये वो ही ले पाते हैं, जो
टच और स्पर्श का अंतर
जानते हैं....
किताबो की दुनिया निराली है
पन्नों को मोड़ना और
उलटना-पलटना
काग़ज़ की खुरदारहट या
चिकनेपन को शब्दों के साथ
महसुसना
नई किताब की खुश्बू को सूंघना
चेहरे पे किताब रखाके सपने देखना
तकिये के पास किताब को रखना और सो जाना
प्रिय पंक्तियों के नीचे पेंसिल से
पटरी बिछाना
एक साथ पतली किताब पी जाना
या फिर मोटी सी पोती को
महीनों तक दवा की तरह गुटाकते रहना
या बीच में छोड़ देना
किताब में काग़ज़ की पर्चिया डालना
रंगीन कवर को निहारना
और पहले पन्ने पर नाम और तारीख लिखना
भेंट में किताब देना या लेना
बहुत सुकून देता हैं
किताबो की दुनिया का मज़ा ही
कुछ और है
ये वो लोग ही ले पाते है, जो
टच और स्पर्श का अंतर जानते है

(ये कविता राजेश जी ने फलोदी से जयपुर के रास्ते में लिखी)
कमल किशोर जैन
जब माँ साथ हो तो किसी दुआ की ज़रूरत ही नही...

जब माँ साथ हो तो फिर से बच्चा बन जाने को जी चाहता है....
जब माँ साथ हो तो क्यूँ उसकी गोद में सिर रखकर सो जाने को जी चाहता है...
क्यूँ दिल भारी हो तो माँ से लिपट कर रोने को जी चाहता है...
क्यूँ उसकी आँखो का एक आँसू परबत सा भारी लगता है...
कैसे बिन कहे उसे हर बात का इल्म हो जाता है...
कैसे हर संकट मे उसका हाथ सर पर नज़र आता है....

माँ तुम साथ हो तो जीना आसान हो जाता है.