कमल किशोर जैन
मेरी जबां पर था उसको भरोसा इतना,
मुझसे खुदको भुला देने की दुहाई ले ली,

कैसे बयां हो सितमगर के सितम,
छीन के हंसी इन लबों की हंसने की दुहाई ले ली.

यूँ रो के गुज़र दी शब हमने आँखों ही आँखों में,
के बेदर्द कहीं रोने की भी न मनाही कर दे.

यूँ बयां हुई गम-ए-दौरान की हकीकत,
संग तो रहा सनम, मगर संगे दिल बनकर 







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